Monday, 20 June 2011

रफ़्ता-रफ़्ता वो मेरी - तसलीम फ़ाज़ली

रफ़्ता-रफ़्ता वो मेरी हस्ती का सामाँ हो गए
पेहले जाँ, फिर जान-ए-जाँ फिर जान-ए-जाना हो गए

दिन-ब-दिन बढने लगीं हुस्न की रानाइयाँ
पेहले गुल, फिर गुल-बदन फिर गुल-बदामाँ गए

आप तो नज़दीक से नज़दीकतर आते गए
पेहले दिल, फिर दिलरुबा, फिर दिल के मेहमाँ हो गए

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