Monday 20 June 2011

हरेक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है -मिर्ज़ा ग़ालिब

हरेक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है
तुम्ही कहो कि यह अनदाज़-ए गुफ़तगू क्या है

न शोले में यह करिशमा न बर्क़ में यह अदा
कोई बताओ कि वह शोख़-ए तुनद-ख़ू क्या है

यह रश्क है कि वह होता है हम-सुख़न तुम से
वगरना ख़ौफ़-ए बद-आमोज़ी-ए अदू क्या है

(हमें इस बात का कोई खौफ़ नहीं के वह तुम्हारे कान भरे
बस तुमसे बात करता है, इसी का रश्क है)

चिपक रहा है बदन पर लहू से पैराहन
हमारे जेब को अब हाजत-ए रफ़ू क्या है

(हम फटेहाल ही सही, मगर अब कपडे सिलने की ज़रूरत नहीं
हमारे ज़ख्म ही हमारा इलाज हैं, जिनसे कपडे बदन पर चिपके जा रहे हैं)
जला है जिस्म जहां दिल भी जल गया होगा
कुरेदते हो जो अब राख जुसतजू क्या है

रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ाइल
जब आंख से ही न टपका तो फिर लहू क्या है

(आशिक़ का लहू कभी सिर्फ़ रगों मे दौडकर नहीं रह जाता,
वह आँख से टपकता है - तब ही लहू कहलाता है)

वह चीज़ जिस के लिये हम को हो बिहिशत अज़ीज़
सिवा-एबादा-ए गुलफ़ाम-ए मुश्क-बू क्या है

(जन्नत में मुझे सबसे अज़ीज़ चीज़ भला
खुश्बूदार गुलाबी मय से ज़्यादा क्या होगी?)

पियूं शराब अगर ख़ुम भी देख लूं दो चार
यह शीशा-ओ-क़दा-ओ- कूज़ा-ओ- सबू क्या है

रही न ताक़त-ए गुफ़तार और अगर हो भी
तो किस उम्मीद पह कहिये कि आरज़ू क्या है

हुआ है शह का मुसाहिब फिरे है इतराता
वगरनह शहर में ग़ालिब की आबरू क्या है

(मिर्ज़ा ग़ालिब)


अब क्या मिसाल दूँ ...मजरूह सुल्तानपुरी

अब क्या मिसाल दूँ मैं तुम्हारे शबाब की
इनसान बन गई है किरण माहताब की
अब क्या मिसाल दूँ ...

चेहरे में घुल गया है हसीं चाँदनी का नूर
आँखों में है चमन की जवाँ रात का सुरूर
गरदन है एक झुकी हुई डाली गुलाब की
अब क्या मिसाल दूँ ...

गेसू खुले तो शाम के दिल से धुआँ उठे
छूले कदम तो झुक के न फिर आस्माँ उठे
सौ बार झिलमिलाये शमा आफ़ताब की
अब क्या मिसाल दूँ ...

दीवार-ओ-दर का रंग, ये आँचल, ये पैरहन
घर का मेरे चिराग़ है बूटा सा ये बदन
तसवीर हो तुम्हीं मेरे जन्नत के ख़्वाब की

अब क्या मिसाल दूँ ...

(मजरूह सुल्तानपुरी)

रँजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिये आ - अहमद फ़राज़

रँजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिये आ
आ फिर से मुझे छोड के जाने के लिये आ

पहले से मरासिम न सही फिर भी कभी तो
रस्म-ओ-रह-ए-दुनिया को निभाने के लिये आ

किस-किस को बतायेंगे जुदाई का सबब हम
तू मुझसे खफ़ा है तो ज़माने के लिये आ

कुछ तो मेरे पिँदार-ए-मुहब्बत क भरम रख
तू भी तो कभी मुझको मनाने के लिये आ

इक उम्र से हूँ लज़्ज़त-ए-गिरिया से भी महरूम
ऐ राहत-ए-जाँ मुझको रुलाने के लिये आ

अब तक दिल-ए-खुशफ़हम को तुझसे हैं उम्मीदें
ये आखिरी शम्में भी बुझाने के लिये आ

(अहमद फ़राज़)

तुम्हारी अँजुमन से उठके दीवाने कहाँ जाते - क़तील शिफ़ाई

तुम्हारी अँजुमन से उठके दीवाने कहाँ जाते
जो वाबस्ता हुए तुमसे वो अफ़्साने कहाँ जाते

निकलकर दैर-ओ-क़ाबा से अगर मिलता न मैखाना
तो ठुकराए हुए इन्साँ, खुदा जाने कहाँ जाते

तुम्हारी बेरुखी ने लाज रख ली बादाखाने की
तुम आँखों से पिला देते तो पैमाने कहाँ जाते

चलो अच्छा हुआ काम आ गई दीवानग़ी अपनी
वगरना हम ज़माने भर को समझाने कहाँ जाते

'क़तील' अपना मुक़द्दर ग़म से बेग़ाना अगर होता
फिर तो अपने पराए हमसे पेहचाने कहाँ जाते

(क़तील शिफ़ाई)

नर हो न निराश करो मन को - मैथली शरण गुप्त

नर हो न निराश करो मन को
कुछ काम करो कुछ काम करो
जग में रहके निज नाम करो ।
यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो
समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो ।
कुछ तो उपयुक्त करो तन को
नर हो न निराश करो मन को ।।

संभलो कि सुयोग न जाए चला
कब व्यर्थ हुआ सदुपाय भला
समझो जग को न निरा सपना
पथ आप प्रशस्त करो अपना ।
अखिलेश्वर है अवलम्बन को
नर हो न निराश करो मन को ।।

जब प्राप्त तुम्हें सब तत्त्व यहां
फिर जा सकता वह सत्त्व कहां
तुम स्वत्त्व सुधा रस पान करो
उठके अमरत्व विधान करो ।
दवरूप रहो भव कानन को
नर हो न निराश करो मन को ।।

निज गौरव का नित ज्ञान रहे
हम भी कुछ हैं यह ध्यान रहे।
सब जाय अभी पर मान रहे
मरणोत्तर गुंजित गान रहे ।
कुछ हो न तजो निज साधन को
नर हो न निराश करो मन को ।।

(मैथली शरण गुप्त)

झाँसी की रानी -सुभद्राकुमारी चौहान

सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,
बूढ़े भारत में आई फिर से नयी जवानी थी,
गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,
दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।

चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

कानपूर के नाना की, मुँहबोली बहन छबीली थी,
लक्ष्मीबाई नाम, पिता की वह संतान अकेली थी,
नाना के सँग पढ़ती थी वह, नाना के सँग खेली थी,
बरछी ढाल, कृपाण, कटारी उसकी यही सहेली थी।

वीर शिवाजी की गाथायें उसकी याद ज़बानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

लक्ष्मी थी या दुर्गा थी वह स्वयं वीरता की अवतार,
देख मराठे पुलकित होते उसकी तलवारों के वार,
नकली युद्ध-व्यूह की रचना और खेलना खूब शिकार,
सैन्य घेरना, दुर्ग तोड़ना ये थे उसके प्रिय खिलवार।

महाराष्टर-कुल-देवी उसकी भी आराध्य भवानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

हुई वीरता की वैभव के साथ सगाई झाँसी में,
ब्याह हुआ रानी बन आई लक्ष्मीबाई झाँसी में,
राजमहल में बजी बधाई खुशियाँ छाई झाँसी में,

चित्रा ने अर्जुन को पाया, शिव से मिली भवानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

उदित हुआ सौभाग्य, मुदित महलों में उजियाली छाई,
किंतु कालगति चुपके-चुपके काली घटा घेर लाई,
तीर चलाने वाले कर में उसे चूड़ियाँ कब भाई,
रानी विधवा हुई, हाय! विधि को भी नहीं दया आई।

निसंतान मरे राजाजी रानी शोक-समानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

बुझा दीप झाँसी का तब डलहौज़ी मन में हरषाया,
राज्य हड़प करने का उसने यह अच्छा अवसर पाया,
फ़ौरन फौजें भेज दुर्ग पर अपना झंडा फहराया,
लावारिस का वारिस बनकर ब्रिटिश राज्य झाँसी आया।

अश्रुपूर्णा रानी ने देखा झाँसी हुई बिरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

अनुनय विनय नहीं सुनती है, विकट शासकों की माया,
व्यापारी बन दया चाहता था जब यह भारत आया,
डलहौज़ी ने पैर पसारे, अब तो पलट गई काया,
राजाओं नव्वाबों को भी उसने पैरों ठुकराया।

रानी दासी बनी, बनी यह दासी अब महरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

छिनी राजधानी दिल्ली की, लखनऊ छीना बातों-बात,
कैद पेशवा था बिठुर में, हुआ नागपुर का भी घात,
उदैपुर, तंजौर, सतारा, करनाटक की कौन बिसात?
जबकि सिंध, पंजाब ब्रह्म पर अभी हुआ था वज्र-निपात।

बंगाले, मद्रास आदि की भी तो वही कहानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

रानी रोयीं रिनवासों में, बेगम ग़म से थीं बेज़ार,
उनके गहने कपड़े बिकते थे कलकत्ते के बाज़ार,
सरे आम नीलाम छापते थे अंग्रेज़ों के अखबार,
'नागपूर के ज़ेवर ले लो लखनऊ के लो नौलख हार'।

यों परदे की इज़्ज़त परदेशी के हाथ बिकानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

कुटियों में भी विषम वेदना, महलों में आहत अपमान,
वीर सैनिकों के मन में था अपने पुरखों का अभिमान,
नाना धुंधूपंत पेशवा जुटा रहा था सब सामान,
बहिन छबीली ने रण-चण्डी का कर दिया प्रकट आहवान।

हुआ यज्ञ प्रारम्भ उन्हें तो सोई ज्योति जगानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

महलों ने दी आग, झोंपड़ी ने ज्वाला सुलगाई थी,
यह स्वतंत्रता की चिनगारी अंतरतम से आई थी,
झाँसी चेती, दिल्ली चेती, लखनऊ लपटें छाई थी,
मेरठ, कानपूर, पटना ने भारी धूम मचाई थी,

जबलपूर, कोल्हापूर में भी कुछ हलचल उकसानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

इस स्वतंत्रता महायज्ञ में कई वीरवर आए काम,
नाना धुंधूपंत, ताँतिया, चतुर अज़ीमुल्ला सरनाम,
अहमदशाह मौलवी, ठाकुर कुँवरसिंह सैनिक अभिराम,
भारत के इतिहास गगन में अमर रहेंगे जिनके नाम।

लेकिन आज जुर्म कहलाती उनकी जो कुरबानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

इनकी गाथा छोड़, चले हम झाँसी के मैदानों में,
जहाँ खड़ी है लक्ष्मीबाई मर्द बनी मर्दानों में,
लेफ्टिनेंट वाकर आ पहुँचा, आगे बड़ा जवानों में,
रानी ने तलवार खींच ली, हुया द्वन्द्ध असमानों में।

ज़ख्मी होकर वाकर भागा, उसे अजब हैरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

रानी बढ़ी कालपी आई, कर सौ मील निरंतर पार,
घोड़ा थक कर गिरा भूमि पर गया स्वर्ग तत्काल सिधार,
यमुना तट पर अंग्रेज़ों ने फिर खाई रानी से हार,
विजयी रानी आगे चल दी, किया ग्वालियर पर अधिकार।

अंग्रेज़ों के मित्र सिंधिया ने छोड़ी रजधानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

विजय मिली, पर अंग्रेज़ों की फिर सेना घिर आई थी,
अबके जनरल स्मिथ सम्मुख था, उसने मुहँ की खाई थी,
काना और मंदरा सखियाँ रानी के संग आई थी,
युद्ध श्रेत्र में उन दोनों ने भारी मार मचाई थी।

पर पीछे ह्यूरोज़ आ गया, हाय! घिरी अब रानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

तो भी रानी मार काट कर चलती बनी सैन्य के पार,
किन्तु सामने नाला आया, था वह संकट विषम अपार,
घोड़ा अड़ा, नया घोड़ा था, इतने में आ गये अवार,
रानी एक, शत्रु बहुतेरे, होने लगे वार-पर-वार।

घायल होकर गिरी सिंहनी उसे वीर गति पानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

रानी गई सिधार चिता अब उसकी दिव्य सवारी थी,
मिला तेज से तेज, तेज की वह सच्ची अधिकारी थी,
अभी उम्र कुल तेइस की थी, मनुज नहीं अवतारी थी,
हमको जीवित करने आयी बन स्वतंत्रता-नारी थी,

दिखा गई पथ, सिखा गई हमको जो सीख सिखानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

जाओ रानी याद रखेंगे ये कृतज्ञ भारतवासी,
यह तेरा बलिदान जगावेगा स्वतंत्रता अविनासी,
होवे चुप इतिहास, लगे सच्चाई को चाहे फाँसी,
हो मदमाती विजय, मिटा दे गोलों से चाहे झाँसी।

तेरा स्मारक तू ही होगी, तू खुद अमिट निशानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

(सुभद्राकुमारी चौहान)

रफ़्ता-रफ़्ता वो मेरी - तसलीम फ़ाज़ली

रफ़्ता-रफ़्ता वो मेरी हस्ती का सामाँ हो गए
पेहले जाँ, फिर जान-ए-जाँ फिर जान-ए-जाना हो गए

दिन-ब-दिन बढने लगीं हुस्न की रानाइयाँ
पेहले गुल, फिर गुल-बदन फिर गुल-बदामाँ गए

आप तो नज़दीक से नज़दीकतर आते गए
पेहले दिल, फिर दिलरुबा, फिर दिल के मेहमाँ हो गए

होके मजबूर मुझे उसने भुलाया होगा -कैफ़ी आज़मी

होके मजबूर मुझे उसने भुलाया होगा

ज़हर चुपके-से दावा जान के खाया होगा

दिल ने ऐसे भी कुछ अफ़साने सुनाए होंगे
अश्क़ आँखों ने पिए, और न बहाए होंगे
बंद कमरे में, जो ख़त मेरे जलाए होंगे
एक-इक हर्फ़ जबीं पर उभर आया होगा

उसने घबरा के नज़र लाख बचाई होगी
दिल की लुटती हुई दुनिया नज़र आई होगी
मेज़ से जब मेरी तस्वीर हटाई होगी
हर तरफ मुझको तड़पता हुआ पाया होगा

छेड़ की बात से अरमां मचल आये होंगे
ग़म दिखावे की हँसी में उबल आये होंगे
नाम पर मेरे जब आंसू निकल आए होंगे
सर न काँधे से सहेली के उठाया होगा

ज़ुल्फ़ जिद करके किसी ने जो बनाई होगी
और भी ग़म की घटा मुखड़े पे चाई होगी
बिजली नजरो ने कई दिन न गिराई होगी
रंग चेहरे पे कई रोज़ न आया होगा

होके मजबूर मुझे उसने भुलाया होगा
ज़हर चुपके-से दावा जान के खाया होगा

(कैफ़ी आज़मी)

Gajal - Amir Khusro











Tuesday 14 June 2011

mushkil hai apna mel priye, ye pyar nahin hai khel priye

mushkil hai apna mel priye, ye pyar nahin hai khel priye,
tum MA 1st division ho, main hua matric phel priye,
mushkil hai apna mel priye, ye pyar nahin hai khel priye,
tum fauji afsar ki beti, main to kisaan ka beta hoon,
tum rabadi kheer malai ho, main to sattu sapreta hoon,
tum AC ghar mein rahti ho, main ped ke neeche leta hoon,
tum nai maruti lagti ho, main scooter lambreta hoon,
is kadar agar hum chup-chup kar aapas me prem badhayenge,
to ek roz tere daddy Amrish Puri ban jaaenge,
sab haddi pasli tod mujhe bhijwaa denge vo jail priye,
mushkil hai apna mel priye, ye pyar nahin hai khel priye,

tum arab desh kee ghodi ho, main hoon gadahe ki naal priye,
tum deewali ka bonus ho, main bhookho ki hadtaal priye,(strike)
tum heere jadi tashtari ho, main almunium ka thaal priye,
tum chicken-soop biryani ho, main kankad waali daal priye,
tum hiran-chaokadi bharti ho, main hoon kachue ki chaal priye, (flight of dear)
tum chandan-wan ki lakdi ho, main hoon babool ki chaal priye,
main pake aam sa latka hoon, mat maaro mujhe gulel priye,
mushkil hai apna mel priye, ye pyar nahin hai khel priye,

main shani-dev jaisa kuroop, tum komal kanchan kaya ho, (ugly)
main tan-se man-se Kanshi Ram, tum maha chanchala maya ho, (naughty)
tum nirmal paawan ganga ho, main jalta hua patanga hoon,(pure)
tum raaj ghaat ka shanti march, main hindu-muslim danga hoon,
tum ho poonam ka taajmahal, main kaali gufa ajanta ki,
tum ho vardaan vidhata ka, main galti hoon bhagvanta ki,(wish of god)
tum jet vimaan ki shobha ho, main bus ki thelam-thel priye, (aeroplane)
mushkil hai apna mel priye, ye pyar nahin hai khel priye,

tum nai videshi mixi ho, main patthar ka silbatta hoon,
tum AK-saintalis jaisi, main to ik desi katta hoon,
tum chatur Rabadi Devi si, main bhola-bhala Lalu hoon,
tum mukt sherni jangal ki, main chidiyaghar ka bhaalu hoon, (free)
tum vyast Sonia Gandhi si, main V.P.Singh sa khali hoon, (busy)
tum hansi Madhuri Dixit ki, main policeman ki gaali hoon,
kal jel agar ho jaaye to dilwa dena tum bail priye,
mushkil hai apna mel priye, ye pyar nahin hai khel priye,

main dhabe ke dhaanche jaisa, tum paanch sitara hotel ho, (structure)
main mahue ka desi tharra, tum red-label ki botal ho,
tum chitra-haar ka madhur geet, main krishi-darshan ki jhaadi hoon, (sweet)
tum vishva-sundari si kamaal, main teliya chaap kabadi hoon,
tum sony ka mobile ho, main telephone waala hoon chonga,
tum machli maansarovar ki, main saagar tat ka hoon ghongha, (shore)
dus manzil se gir jaaooga, mat aage mujhe dhakel priye,
mushkil hai apna mel priye, ye pyar nahin hai khel priye,

tum satta ki maharani ho, main vipaksha ki lachari hoon, (in power/opposition)
tum ho mamta-Jailalita si, main kwara Atal-Bihari hoon,
tum Tendulkar ka shatak priye, main follow on ki paari hoon, (century)
tum getz, matiz, corolla ho main Leyland ki lorry hoon,
mujhko refree hi rehne do, mat khelo mujhse khel priye,
mushkil hai apna mel priye, ye pyar nahin hai khel priye,
main soch raha ki rahe hain kabse, shrota mujhko jhel priye, (listeners)
mushkil hai apna mel priye, ye pyar nahin hai khel priye

Kisi ke kam na aaye wo zindagi kya hai

Kisi ke kam na aaye wo zindagi kya hai
Kisi ke kam na aaye wo zindagi kya hai,
Adab jisme na ho shamil wo bandagi kya hai !

Mahaj tarkon se dalilon sey bat banti nahi,
Wazan jisme na shagufta wo bat hi kya hai !

Unche mahalon me guzar karte hai jehan roshan,
WO kya samjhege muflishon ki muflishi kya hai !

Sukhe adhnange badan fakon ko majboor hai Jo,
Gaor se socho jara e bhi zindagi kya hai !

Mauj masti ko honge dost hajaron lekin,
Bure din me na aaye kam wo dosti kya hai !

Kare Jo darj apana nam nahi safahon me,
Makam jiska martaba na wo hasti kya hai !

Aman aur chain shakun ka jaha na dera ho,
Basera khaak hai “Saqi” wo basti kya hai !!


Kuchh adhuri khwahishon ka silsila hai zindagi,
Manzilon se ek musalsal fasala hai zindagi !

Mere darwaze pe dastak de ke chhup Jane ka khel,
Kab talak khelegi eh kya bachpana hai zindagi !

Tere afsane to mai sunta raha Hun baraha,
Naam kya tune kabhi mera suna hai zindagi !

Zinda Hun doston ki duaaon ke bawajud,
Roshan hai kitani tej hawaon is zindagi !

Apani tamam shokh adaaon ke bawajud,
Bahla saki na jee mera eek pal bhi zindagi !

Bojhil hai rat chand sitaron ke bawajud,
Suraj ke bawajud andhera hai zindagi !

Barbaad hamko hona tha barbad ham huye,
Duniya hai sari nek salahon is zindagi !

Kaatil the jitane mere sabhi ho gaye bari,
Aur chup khadi thi chasmdeed gawahon si zindagi !